अमृत वेले का हुक्मनामा – 29 जून 2023
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ रागु सूही छंत महला १ घरु ४ ॥ जिनि कीआ तिनि देखिआ जगु धंधड़ै लाइआ ॥ दानि तेरै घटि चानणा तनि चंदु दीपाइआ ॥ चंदो दीपाइआ दानि हरि कै दुखु अंधेरा उठि गइआ ॥ गुण जंञ लाड़े नालि सोहै परखि मोहणीऐ लइआ ॥ वीवाहु होआ सोभ सेती पंच सबदी आइआ ॥ जिनि कीआ तिनि देखिआ जगु धंधड़ै लाइआ ॥१॥
जिस प्रभु ने यह जगत पैदा किया है उसी ने इस की संभल की हुई है, उसी ने इस को माया की भाग दौड़ में लगा रखा है। (पर है प्रभु ! तेरी बख्शीश से (किसी भाग्य वाले ) हृदय में तेरी ज्योति का प्रकाश होता है, ( किसी भाग्य वाले) शरीर में चाँद चमकता है (तेरे नाम की शीतलता झूलती है) प्रभु की बख्शीश से जिस हृदय में (प्रभु नाम की) शीतलता चमक मरती है उस हृदय मे से (अज्ञानता का ) अँधेरा और दुःख कलेश दूर हो जाता है । जैसे बारात दुल्हे के साथ ही सुंदर लगती है, वैसे ही जीव स्त्री के गुण तभी अच्छे लगते हैं जब वो प्रभु-पति हृदय में बसा हो । जिस जीव स्त्री ने अपने जीवन को प्रभु की सिफत सलाह से सुंदर बना लिया है, उस ने इस की कदर समझ की ।प्रभु को अपने हृदय में बसा लिया है। उस का प्रभु पति से मिलाप हो जाता है, (लोक परलोक में ) उस को शोभा भी मिलती है, एक रस आत्मिक आनंद का दाता प्रभु उस के हृदय में प्रकट हो जाता है । जिस प्रभु ने यह जगत पैदा किया है वो ही इस की संभाल करता है, उस ने इस को माया की भागा दौड़ मे लगाया हुआ है।