अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 1 जून 2023

सलोक ॥ रचंति जीअ रचना मात गरभ असथापनं ॥ सासि सासि सिमरंति नानक महा अगनि न बिनासनं ॥१॥ मुखु तलै पैर उपरे वसंदो कुहथड़ै थाइ ॥ नानक सो धणी किउ विसारिओ उधरहि जिस दै नाइ ॥२॥

जो परमात्मा जीवों की बनावट बनता है और उनको माँ के पेट में जगह देता है, हे नानक! जीव उस को हरेक साँस के साथ साथ याद करते रहते हैं और (और माँ के पेट की) बड़ी (भयानक) अग्नि उसका नास नहीं कर सकती।१। हे नानक! (कह-हे भाई!) जब तेरा मुख निचे को था, पैर ऊपर को थे, बहुत मुश्किल जगह पर तू बस्ता था तब जिस प्रभु के नाम की बरकत से तू बचा रहा, अब उस मालिक को तुमने क्यों भुला दिया।२।


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