अमृत वेले का हुक्मनामा – 28 अप्रैल 2023
रामकली महला ३ अनंदु ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ एहु सोहिला सबदु सुहावा ॥ सबदो सुहावा सदा सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥ एहु तिन कै मंनि वसिआ जिन धुरहु लिखिआ आइआ ॥ इकि फिरहि घनेरे करहि गला गली किनै न पाइआ ॥ कहै नानकु सबदु सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥१६॥ पवितु होए से जना जिनी हरि धिआइआ ॥ हरि धिआइआ पवितु होए गुरमुखि जिनी धिआइआ ॥ पवितु माता पिता कुट्मब सहित सिउ पवितु संगति सबाईआ ॥ कहदे पवितु सुणदे पवितु से पवितु जिनी मंनि वसाइआ ॥ कहै नानकु से पवितु जिनी गुरमुखि हरि हरि धिआइआ ॥१७॥
अर्थ :- राग रामकली में गुरु अमरदास जी की बाणी, परमात्मा एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा ही मिलता है। (सतिगुरु का) यह सुंदर शब्द (आत्मिक) आनंद देने वाला गीत है, (यकीन जानो कि) सतिगुरु ने जो सुंदर शब्द सुणाया है वह सदा आत्मिक आनंद देने वाला है। पर यह गुर-शब्द उन के मन में बसता है जिन के माथे पर धुर से लिखा लेख उॅघड़ता है। बहुत सारे अनेकों ऐसे मनुख घूमते हैं (जिन के मन में गुर-शब्द तो नहीं बसा, पर ज्ञान की) बातें करते हैं। केवल बातों के साथ आत्मिक आनंद किसी को नहीं मिला। गुरु नानक जी कहते हैं-सतिगुरु का सुणाया हुआ शब्द ही आत्मिक आनंद-दाता है।16। (गुर शब्द का सदका) जिन बंदों ने परमात्मा का नाम सुमिरा (उन के अंदर ऐसा आनंद पैदा हुआ कि माया वाले रसों की उनको खिंच ही ना रही, और) वह मनुख पवित्र जीवन वाले बन गए। गुरु की शरण में आकर जिन्हों ने जिस जिस ने हरि का नाम सुमिरा वह शुद्ध आचरन वाले हो गए ! (उन की लाग के साथ) उन के माता पिता परिवार के जीव पवित्र जीवन वाले बने, जिन्हों ने जिस जिस ने उन की संगत की वह सारे पवित्र हो गए। हरि-नाम (एक ऐसा आनंद का सोमा है कि इस को) जपने वाले भी पवित्र और सुनने वाले भी पवित्र हो जाते हैं, जो इस को मन में बसाते हैं वह भी पवित्र हो जाते हैं। गुरु नानक जी कहते हैं-जिन प्राणियों ने गुरु की शरण में आकर हरि-नाम सुमिरा है वह शुद्ध आचरन वाले हो गए हैं।17।