संधिआ वेले का हुक्मनामा – 5 अप्रैल 2023
सोरठि ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ बहु परपंच करि पर धनु लिआवै ॥ सुत दारा पहि आनि लुटावै ॥१॥ मन मेरे भूले कपटु न कीजै ॥ अंति निबेरा तेरे जीअ पहि लीजै ॥१॥ रहाउ ॥ छिनु छिनु तनु छीजै जरा जनावै ॥ तब तेरी ओक कोई पानीओ न पावै ॥२॥ कहतु कबीरु कोई नही तेरा ॥ हिरदै रामु की न जपहि सवेरा ॥३॥९॥
अर्थ: हे मेरे भूले हुए मन! (रोजी आदि के खातिर किसी के साथ) धोखा-फरेब ना किया कर। आखिर को (इन बुरे कर्मों का) लेखा तेरे अपने प्राणों से ही लिया जाना है।1। रहाउ।कई तरह की ठॅगीयां करके तू पराया माल लाता है, और ला के तू पुत्र व पत्नी पर आ लुटाता है।1। (देख, इन ठॅगियों में ही) सहजे सहजे तेरा अपना शरीर कमजोर होता जा रहा है, बुढ़ापे की निशानियां आ रही हैं (जब तू बुढ़ा हो गया, और हिलने के काबिल भी ना रहा) तब (इन में से, जिनकी खातिर तू ठॅगियां करता है) किसी ने तेरी चुल्ली में पानी भी नहीं डालना।2। (तुझे) कबीर कहता है– (हे जिंदे!) किसी ने भी तेरा (साथी) नहीं बनना। (एक प्रभू ही असल साथी है) तू समय रहते (अभी-अभी) उस प्रभू को क्यों नहीं सिमरती?।3।9।
WaheGuruJi Ka Khalsa WaheGuruJi Ki Fateh