अमृत वेले का हुक्मनामा – 9 मार्च 2023
बिलावलु महला ५ ॥ सोई मलीनु दीनु हीनु जिसु प्रभु बिसराना ॥ करनैहारु न बूझई आपु गनै बिगाना ॥१॥ दूखु तदे जदि वीसरै सुखु प्रभ चिति आए ॥ संतन कै आनंदु एहु नित हरि गुण गाए ॥१॥ रहाउ ॥ ऊचे ते नीचा करै नीच खिन महि थापै ॥ कीमति कही न जाईऐ ठाकुर परतापै ॥२॥ पेखत लीला रंग रूप चलनै दिनु आइआ ॥ सुपने का सुपना भइआ संगि चलिआ कमाइआ ॥३॥ करण कारण समरथ प्रभ तेरी सरणाई ॥ हरि दिनसु रैणि नानकु जपै सद सद बलि जाई ॥४॥२०॥५०॥
हे भाई! जिस मनुख को परमात्मा भूल जाता है, वोही मनुख गन्दा है, कंगाल है, नीच है। वह मुर्ख मनुख अपने आप को (कोई बड़ी हस्ती) समझता रहता है, सब कुछ करने में समर्थ प्रभु को कुछ नहीं समझता॥१॥ (हे भाई! मनुख को) तभी दुःख मिलता है जब इस को प्रभु भूल जाता है। परमात्मा मन में सदा बसने से सुख प्रतीत होता है। प्रभु का सेवक सदा प्रभु के गुण गाता रहता है। सेवकों के हृदये में यह आनंद टिका रहता है॥१॥रहाउ॥(परन्तु, हे भाई! याद रख) परमात्मा ऊँचे (अकड़खान) को निचा बना देता है, और नीचों को एक पल में ही इज्ज़त वाले बना देता है। उस परमात्मा के प्रातक का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता॥२॥ (हे भाई! दुनिया के) खेल-तमाशे (दुनिया के) रंग-रूप देखते-देखते (ही मनुष्य के दुनिया से) चलने के दिन आ पहुँचते हैं। इन रंग-तमाशों से तो साथ खत्म ही होना था, वह साथ खत्म हो जाता है, मनुष्य के साथ तो किए हुए कर्म ही जाते हैं।3। हे जगत के रचनहार प्रभू! हे सारी ताकतों के मालिक प्रभू! (तेरा दास नानक) तेरी शरण आया है। हे हरी! नानक दिन-रात (तेरा ही नाम) जपता है, तुझसे ही सदा-सदा सदके जाता है।4।20।50।