अमृत वेले का हुक्मनामा – 23 फरवरी 2023
सोरठि महला १ ॥ जिसु जल निधि कारणि तुम जगि आए सो अम्रितु गुर पाही जीउ ॥ छोडहु वेसु भेख चतुराई दुबिधा इहु फलु नाही जीउ ॥१॥ मन रे थिरु रहु मतु कत जाही जीउ ॥ बाहरि ढूढत बहुतु दुखु पावहि घरि अम्रितु घट माही जीउ ॥ रहाउ ॥ अवगुण छोडि गुणा कउ धावहु करि अवगुण पछुताही जीउ ॥ सर अपसर की सार न जाणहि फिरि फिरि कीच बुडाही जीउ ॥२॥ अंतरि मैलु लोभ बहु झूठे बाहरि नावहु काही जीउ ॥ निरमल नामु जपहु सद गुरमुखि अंतर की गति ताही जीउ ॥३॥ परहरि लोभु निंदा कूड़ु तिआगहु सचु गुर बचनी फलु पाही जीउ ॥ जिउ भावै तिउ राखहु हरि जीउ जन नानक सबदि सलाही जीउ ॥४॥९॥
जिस अमृत के खजाने की खातिर आप जगत में आये हो वह अमृत गुरु से प्राप्त होता है। धार्मिक भेस का पहरावा छोड़ो, मन की चालाकी भी छोड़ो, इस दो-तरफी चाल में पड़ने से यह अमृत-फल नहीं किल सकता॥1॥ अगर तुम बहार ढूंढने निकल पड़े तो, बहुत दुःख पाओगे। अटल जीवन देने वाला रस तेरे घर में ही है, हृदये में ही है॥रहाउ॥ हे मेरे मन! (अंदर ही प्रभु के चरणों में) टिका रह, (देखना, नाम अमृत की खोज में) कही बहार भटकता न फिरना। अवगुण छोड़ कर गुण हासिल करने का यतन करो। अगर अवगुण ही करते रहोगे तो पछताना पड़ेगा। (हे मन!) तू बार बार मोह के कीचड़ में डूब रहा है, तू अच्छे बुरे की परख करना नहीं जानता॥2॥(हे भाई!) अगर अंदर (मन में) लोभ की मैल है (और लोभ के अधीन हो के) कई ठॅगी के काम करते हो, तो बाहर (तीर्थ आदि पर) स्नान करने के क्या लाभ? अंदर की ऊँची अवस्था तभी बनेगी जब गुरू के बताए हुए रास्ते पर चल के सदा प्रभू का पवित्र नाम जपोगे।3। (हे मन!) लोभ त्याग, निंदा और झूठ त्याग। गुरू के बचनों में चलने से ही सदा स्थिर रहने वाला अमृत-फल मिलेगा। हे दास नानक! (प्रभू दर पर अरदास कर और कह–) हे हरी! जैसे तेरी रजा हो वैसे ही मुझे रख (पर ये मेहर कर कि गुरू के) शबद में जुड़ के मैं तेरी सिफत सालाह करता रहूँ।4।9।