अमृत वेले का हुक्मनामा – 12 फरवरी 2023
रामकली महला ५ ॥ जो तिसु भावै सो थीआ ॥ सदा सदा हरि की सरणाई प्रभ बिनु नाही आन बीआ ॥१॥ रहाउ ॥ पुतु कलत्रु लखिमी दीसै इन महि किछू न संगि लीआ ॥ बिखै ठगउरी खाइ भुलाना माइआ मंदरु तिआगि गइआ ॥१॥ निंदा करि करि बहुतु विगूता गरभ जोनि महि किरति पइआ ॥ पुरब कमाणे छोडहि नाही जमदूति ग्रासिओ महा भइआ ॥२॥ बोलै झूठु कमावै अवरा त्रिसन न बूझै बहुतु हइआ ॥ असाध रोगु उपजिआ संत दूखनि देह बिनासी महा खइआ ॥३॥ जिनहि निवाजे तिन ही साजे आपे कीने संत जइआ ॥ नानक दास कंठि लाइ राखे करि किरपा पारब्रहम मइआ ॥४॥४४॥५५॥
अर्थ: हे भाई! जो कुछ प्रभू को अच्छा लगता है वही हो रहा है। (इस वास्ते) सदा ही उस प्रभू की शरण पड़ा रह। प्रभू के बिना कोई और दूसरा (कुछ करने के योग्य) नहीं है।1। रहाउ। हे भाई! पुत्र, स्त्री, माया – ये जो कुछ दिखाई दे रहा है, इनमें से कुछ भी (अंत के समय जीव) अपने साथ नहीं ले के जाता। विषौ-विकारों की ठॅगबूटी खा के जीव गलत रास्ते पर पड़ा रहता है, आखिर में ये माया, ये सुंदर घर (सब कुछ) छोड़ के चला जाता है।1। हे भाई! जीव दूसरों की निंदा कर कर के बहुत ख्वार होता रहता है, और अपने इस किए अनुसार जनम-मरण के चक्कर में जा पड़ता है। (ये आम असूल की बात है कि) पूर्बले किए कर्मों के संस्कार जीव को छोड़ते नहीं हैं, और बहुत भयानक जमदूत इसे काबू में किए रखता है।2। (माया के मोह की ठॅगबूटी खा के माया की खातिर जीव) झूठ बोलता है (मुँह से बोलता और है, और,) करता कुछ और है, इसकी माया की भूख मिटती नहीं, माया की ‘हाय हाय’ सदा इसको लगी रहती है। संत जनों की निंदा करने के कारण (माया की तृष्णा का) ला-इलाज रोग (जीव के अंदर) पैदा हो जाता है इस बड़े क्षय रोग में ही इसका शरीर नाश हो जाता है।3। (पर, हे भाई! संत जनों की निंदा से जीव को कुछ भी हासिल नहीं होता) प्रभू ने स्वयं ही संत जनों को जीत का मालिक बनाया होता है, उन्हें उसी प्रभू ने पैदा किया हुआ है जिसने उनको आदर-सम्मान दिया हुआ है। हे नानक! परमात्मा मेहर करके दया करके अपने दासों को खुद ही अपने गले से लगाए रखता है।4।44।55।