अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 20 फरवरी 2025

आसा ॥ आनीले कु्मभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ ॥ बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ ॥१॥ जत्र जाउ तत बीठलु भैला ॥ महा अनंद करे सद केला ॥१॥ रहाउ ॥ आनीले फूल परोईले माला ठाकुर की हउ पूज करउ ॥ पहिले बासु लई है भवरह बीठल भैला काइ करउ ॥२॥ आनीले दूधु रीधाईले खीरं ठाकुर कउ नैवेदु करउ ॥ पहिले दूधु बिटारिओ बछरै बीठलु भैला काइ करउ ॥३॥ ईभै बीठलु ऊभै बीठलु बीठल बिनु संसारु नही ॥ थान थनंतरि नामा प्रणवै पूरि रहिओ तूं सरब मही ॥४॥२॥ {पन्ना 485}

अर्थ: घड़ा ला के (उस में) पानी भरा के (अगर) मैं मूर्ति को स्नान कराऊँ (तो वह स्नान परवान नहीं, पानी झूठा है, क्योंकि) पानी में बयालिस लाख (जूनियों के) जीव रहते हैं। (पर मेरा) निर्लिप प्रभू तो पहले ही (उन जीवों में) बसता था (और स्नान कर रहा था, तो फिर मूर्ति को) मैं किस लिए स्नान करवाऊँ?।1।
मैं जिधर जाता हूँ, उधर ही निर्लिप प्रभू मौजूद है (सब जीवों में व्यापक हो के) बड़े आनंद-चोज-तमाशे कर रहा है।1। रहाउ।
फूल ला के और उसकी माला परो के अगर मैं मूर्ति की पूजा करूँ (तो वह फूल झूठे होने के कारण वह पूजा परवान नहीं, क्योंकि उन फूलों की) सुगंधि तो पहले भौरे ने ले ली; (पर मेरा) बीठल तो पहले ही (उस भौरे में) बसता था (और सुगंधि ले रहा था, तो फिर इन फूलों से) मूर्ति की पूजा मैं किस लिए करूँ?।2।
दूध ला के खीर पका के अगर मैं यह खाने वाला उत्तम पदार्थ मूर्ति के आगे भेटा रखूँ (तो दूध झूठा होने के कारण भोजन परवान नहीं, क्योंकि दूध दूहने के समय) पहले बछड़े ने दूध झूठा कर दिया था; (पर मेरा) बीठल तो पहले ही (उस बछड़े में) बसता था (और दूध पी रहा था, तो इस मूर्ति के आगे) मैं क्यों नैवेद भेटा करूँ?।3।
(जगत में) नीचे ऊपर (हर जगह) बीठल ही बीठल है, बीठल से वंचित जगत रह ही नहीं सकता। नामदेव उस बीठल के आगे विनती करता है– (हे बीठल!) तू सारी सृष्टि में हर जगह पर भरपूर है।4।2।


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