संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 26 जनवरी 2025

सोरठि महला ५ ॥ ऐथै ओथै रखवाला ॥ प्रभ सतिगुर दीन दइआला ॥ दास अपने आपि राखे ॥ घटि घटि सबदु सुभाखे ॥१॥ गुर के चरण ऊपरि बलि जाई ॥ दिनसु रैनि सासि सासि समाली पूरनु सभनी थाई ॥ रहाउ॥ आपि सहाई होआ ॥ सचे दा सचा ढोआ ॥ तेरी भगति वडिआई ॥ पाई नानक प्रभ सरणाई ॥२॥१४॥७८॥

अर्थ: हे भाई! गुरु प्रभु गरीबों पर दया करने वाला है, (शरण आए की) इस लोक और परलोक में रक्षा करने वाला है। (हे भाई! प्रभु) अपने सेवकों की स्वयं रक्षा करता है (सेवकों को ये भरोसा रहता है कि) प्रभु हरेक शरीर में (स्वयं ही) वचन बिलास कर रहा है।1। हे भाई! मैं (अपने) गुरु के चरणों से सदके जाता हूँ, (गुरु की कृपा से ही) मैं (अपने) हरेक सांस के साथ दिन रात (उस परमात्मा को) याद करता रहता हूँ जो सब जगहों में भरपूर है। रहाउ। (हे भाई! गुरु की कृपा से) परमात्मा स्वयं मददगार बनता है (गुरु की मेहर से) सदा स्थिर रहने वाले प्रभु की सदा स्थिर रहने वाली महिमा की दाति मिलती है। हे नानक! (कह:) हे प्रभु! (गुरु की कृपा से) तेरी शरण में आने से, तेरी भक्ति, तेरी महिमा प्राप्त होती है।2।14।78।


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