संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 21 दसंबर 2024

*सलोकु मः ३ ॥*
*हसती सिरि जिउ अंकसु है अहरणि जिउ सिरु देइ ॥ मनु तनु आगै राखि कै ऊभी सेव करेइ ॥ इउ गुरमुखि आपु निवारीऐ सभु राजु स्रिसटि का लेइ ॥ नानक गुरमुखि बुझीऐ जा आपे नदरि करेइ ॥१॥ मः ३ ॥ जिन गुरमुखि नामु धिआइआ आए ते परवाणु ॥ नानक कुल उधारहि आपणा दरगह पावहि माणु ॥२॥ पउड़ी ॥ गुरमुखि सखीआ सिख गुरू मेलाईआ ॥ इकि सेवक गुर पासि इकि गुरि कारै लाईआ ॥ जिना गुरु पिआरा मनि चिति तिना भाउ गुरू देवाईआ ॥ गुर सिखा इको पिआरु गुर मिता पुता भाईआ ॥ गुरु सतिगुरु बोलहु सभि गुरु आखि गुरू जीवाईआ ॥१४॥*

*अर्थ: जैसे हाथी के सिर पर कुंडा है और जैसे अहरण (हथौड़े के नीचे) सिर देती है, वैसे शरीर और मन (सतिगुरू को) अर्पित कर के सावधान हो कर सेवा करो; सतिगुरू के सनमुख हो कर मनुष्य इस तरह आपा-भाव खत्म कर लेता है और, मानों, सारी सिृसटी का राज ले लेता है। हे नानक जी! जब हरी आप कृपा की निगाह करता है तब सतिगुरू के सनमुख हो कर यह समझ आती है ॥१॥ (संसार में) आए वह मनुष्य सफल हैं जिन्होंने सतिगुरू के बताए मार्ग पर चल कर नाम सिमरिया है; हे नानक जी! वह मनुष्य अपनी कुल को तार लेते हैं और आप दरगह में आदर पाते हैं* *॥२॥ सतिगुरू ने गुरमुख सिक्ख (-रूप) सहेलियाँ (प्रभू में) मिलाइयाँ हैं; उन में से कई सतिगुरू के पास सेवा करती हैं, कइयों को सतिगुरू ने (ओर) कार्य में लगाया हुआ है; जिन के मन में प्यारा गुरू वसता है, सतिगुरू उन को अपना प्यार बख़्श़ता है, सतिगुरू का अपने सिक्खों मित्रों पुत्रों और भाइयों से एक जैसा प्यार होता है। (हे सिक्ख सहेलियों!) सभी ‘गुरू, गुरू’ कहो, ‘गुरू, गुरू’ कहने से गुरू आतमिक जीवन दे देता है ॥१४॥*


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top