संधिआ वेले का हुक्मनामा – 8 दसंबर 2024
सोरठि महला ५ ॥ विचि करता पुरखु खलोआ ॥ वालु न विंगा होआ ॥ मजनु गुर आंदा रासे ॥ जपि हरि हरि किलविख नासे ॥१॥ संतहु रामदास सरोवरु नीका ॥ जो नावै सो कुलु तरावै उधारु होआ है जी का ॥१॥ रहाउ ॥ जै जै कारु जगु गावै ॥ मन चिंदिअड़े फल पावै ॥ सही सलामति नाइ आए ॥ अपणा प्रभू धिआए ॥२॥ संत सरोवर नावै ॥ सो जनु परम गति पावै ॥ मरै न आवै जाई ॥ हरि हरि नामु धिआई ॥३॥ इहु ब्रहम बिचारु सु जानै ॥ जिसु दइआलु होए भगवानै ॥ बाबा नानक प्रभ सरणाई ॥ सभ चिंता गणत मिटाई ॥४॥७॥५७॥
अर्थ: हे संत जनो! साध-संगति (एक) सुंदर (स्थान) है। जो मनुष्य (साध-संगति में) आत्मिक स्नान करता है (मन को नाम-जल से पवित्र करता है), उसके जीवन का (विकारों से) पार-उतारा हो जाता है, वह अपनी सारी कुल को भी (संसार समुंद्र से) पार लंघा लेता है।1। रहाउ।(हे भाई! साध-संगति में जिस मनुष्य का) आत्मिक स्नान गुरू ने सफल कर दिया, वह मनुष्य सदा परमात्मा का नाम जप-जप के (अपने सारे) पाप नाश कर लेता है। सर्व-व्यापक करतार खुद उसकी सहायता करता है, (उसकी आत्मिक राशि-पूँजी का) रक्ती भर भी नुकसान नहीं होता।1।हे भाई! (जो मनुष्य राम के दासों के सरोवर में टिक के) अपने परमात्मा की आराधना करता है, (वह मनुष्य इस सत्संग-सरोवर में आत्मिक) स्नान कर के अपनी आत्मिक जीवन की राशि-पूँजी को पूर्ण-तौर पर बचा लेता है। सारा जगत उसकी शोभा के गीत गाता है, वह मनुष्य मन-वांछित फल हासिल कर लेता है।2।हे भाई! जो मनुष्य संतो के सरोवर में (साध-संगति में) आत्मिक स्नान करता है, वह मनुष्य सबसे उच्च आत्मिक अवस्था हासिल कर लेता है। जो मनुष्य सदा परमात्मा का नाम सिमरता रहता है, वह जनम-मरण के चक्कर में नहीं पड़ता।3।हे भाई! परमात्मा के मिलाप की इस विचार को वही मनुष्य समझता है जिस पर परमात्मा खुद दयावान होता है। हे नानक! (कह–) हे भाई! जो मनुष्य परमात्मा की शरण पड़ा रहता है, वह अपनी हरेक किस्म की चिंता-फिक्र दूर कर लेता है।4।7।57।