अमृत वेले का हुक्मनामा – 18 अक्टूबर 2024
*सोरठि महला ५ ॥*
*राजन महि राजा उरझाइओ मानन महि अभिमानी ॥ लोभन महि लोभी लोभाइओ तिउ हरि रंगि रचे गिआनी ॥१॥ हरि जन कउ इही सुहावै ॥ पेखि निकटि करि सेवा सतिगुर हरि कीरतनि ही त्रिपतावै ॥ रहाउ ॥ अमलन सिउ अमली लपटाइओ भूमन भूमि पिआरी ॥ खीर संगि बारिकु है लीना प्रभ संत ऐसे हितकारी ॥२॥ बिदिआ महि बिदुअंसी रचिआ नैन देखि सुखु पावहि ॥ जैसे रसना सादि लुभानी तिउ हरि जन हरि गुण गावहि ॥३॥ जैसी भूख तैसी का पूरकु सगल घटा का सुआमी ॥ नानक पिआस लगी दरसन की प्रभु मिलिआ अंतरजामी ॥४॥५॥१६॥*
*☬ अर्थ ☬*
*(हे भाई! जैसे) राज के कामों में राजा मग्न रहता है, जैसे मान बढ़ाने वाले कामों में आदर-मान का भूखा मनुष्य मस्त रहता है, जैसे लालची मनुष्य लालच बढ़ाने वाले कर्मों में फँसा रहता है, उसी प्रकार जीवन की सूझ वाला मनुष्य प्रभू के प्रेम-रंग में मस्त रहता है ॥१॥ परमात्मा के भगत को यही कर्म अच्छा लगता है। (भगत परमात्मा को) अंग-संग देख कर, और, गुरू की सेवा करके परमात्मा की सिफ़त-सलाह में ही प्रसन्न रहता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! नशों का प्रेमी मनुष्य नशों के साथ जुड़ा रहता है, ज़मीन के मालिकों को ज़मीन प्यारी लगती है, बच्चा दूध से मस्त रहता है। इसी प्रकार संत जन परमात्मा के साथ प्यार करते हैं ॥२॥ हे भाई! विद्वान मनुष्य विद्या (पढ़ने पढ़ाने) मे ख़ुश रहता है, आँखें (पदार्थ) देख देख के सुख मानती हैं। हे भाई! जिस तरह जीभ (स्वादिष्ट पदार्थों के) स्वाद (चख्खन) में ख़ुश रहती है, वैसे ही प्रभू के भगत प्रभू की सिफ़त-सलाह के गीत गाते हैं ॥३॥ हे भाई! सभी शरीरों का मालिक प्रभू जिस तरह किसे जीव की लालसा हो वैसी ही पूरी करने वाला है। हे नानक जी! (जिस मनुष्य को) परमातमा के दर्शन की प्यास लगती है, उस मनुष्य को दिल की जानने वाला परमातमा (आप) आ मिलता है ॥४॥५॥१६॥*