अमृत वेले का हुक्मनामा – 8 अक्टूबर 2024
बिलावलु महला ५ ॥ सिमरि सिमरि प्रभु आपना नाठा दुख ठाउ ॥ बिस्राम पाए मिलि साधसंगि ता ते बहुड़ि न धाउ ॥१॥ बलिहारी गुर आपने चरनन्ह बलि जाउ ॥ अनद सूख मंगल बने पेखत गुन गाउ ॥१॥ रहाउ ॥ कथा कीरतनु राग नाद धुनि इहु बनिओ सुआउ ॥ नानक प्रभ सुप्रसंन भए बांछत फल पाउ ॥२॥६॥७०॥ {पन्ना 818}
अर्थ: हे भाई! मैं अपने गुरू से कुर्बान जाता हूँ, मैं (अपने गुरू के) चरणों से सदके जाता हूँ। गुरू के दर्शन करके मैं प्रभू की सिफत-सालाह के गीत गाता हूँ, और मेरे अंदर सारे आनंद, सारे सुख सारे चाव-हिल्लोरे बने रहते हैं।1। रहाउ।
हे भाई! गुरू की संगति में मिल के मैंने प्रभू के चरणों में निवास हासिल कर लिया है (इस वास्ते) उस (साध-संगति) से कभी परे नहीं भागता। (गुरू की संगति की बरकति से) मैं अपने प्रभू का हर वक्त सिमरन करके (ऐसी अवस्था में पहुँच गया हूँ कि मेरे अंदर से) दुखों का ठिकाना ही दूर हो गया है।1।
हे नानक! (कह- हे भाई! गुरू की कृपा से) प्रभू की कथा-कहानियाँ, कीर्तन, सिफत-सालाह की लगन – यही मेरी जिंदगी का निशाना बन गए हैं। (गुरू की मेहर से) प्रभू जी (मेरे पर) बहुत खुश हो गए हैं, मैं अब मन-माँगा फल प्राप्त कर रहा हूँ।2।6।70।