अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 7 अक्टूबर 2024

*धनासरी महला ५ ॥*
*फिरत फिरत भेटे जन साधू पूरै गुरि समझाइआ ॥ आन सगल बिधि कांमि न आवै हरि हरि नामु धिआइआ ॥१॥ ता ते मोहि धारी ओट गोपाल ॥ सरनि परिओ पूरन परमेसुर बिनसे सगल जंजाल ॥ रहाउ ॥ सुरग मिरत पइआल भू मंडल सगल बिआपे माइ ॥ जीअ उधारन सभ कुल तारन हरि हरि नामु धिआइ ॥२॥ नानक नामु निरंजनु गाईऐ पाईऐ सरब निधाना ॥ करि किरपा जिसु देइ सुआमी बिरले काहू जाना ॥३॥३॥२१॥*
*अर्थ:हे भाई! खोजते खोजते जब मैं गुरू महा पुरख को मिला, तो पूरे गुरू ने (मुझे) यह समझ दी की (माया के मोह से बचने के लिए) ओर सारी जुग्तियों में से एक भी जुगत काम नहीं आती। परमात्मा का नाम सिमरिया हुआ ही काम आता है ॥१॥ इस लिए, हे भाई! मैंने परमात्मा का सहारा ले लिया। (जब मैं) सरब-व्यापक परमात्मा के शरन पड़ा, तो मेरे सारे (माया के) जंजाल नाश हो गए ॥ रहाउ ॥ हे भाई! देव लोग, मात लोग, पाताल-सारी ही सृष्टि माया (के मोह में) फंसी हुई है। हे भाई! सदा परमात्मा का नाम सिमरिया करो, यही है जिंद को (माया के मोह से) बचाने वाला, यही है सारी कुलों को तारने वाला ॥२॥ नानक जी! माया से निरलेप परमातमा का नाम गाना चाहिए, (नाम की बरकत से) सभी खजानों की प्रापती हो जाती है, पर (यह भेत) किसी (वह) विरले मनुष्य ने समझा है जिस पर मालिक प्रभू आप मेहर कर के (नाम की दात) देता है ॥३॥३॥२१॥*


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