संधिआ वेले का हुक्मनामा – 6 अक्टूबर 2024

धनासरी महला ५ ॥ जा कउ हरि रंगु लागो इसु जुग महि सो कहीअत है सूरा ॥ आतम जिणै सगल वसि ता कै जा का सतिगुरु पूरा ॥१॥ ठाकुरु गाईऐ आतम रंगि ॥ सरणी पावन नाम धिआवन सहजि समावन संगि ॥१॥ रहाउ ॥ जन के चरन वसहि मेरै हीअरै संगि पुनीता देही ॥ जन की धूरि देहु किरपा निधि नानक कै सुखु एही ॥२॥४॥३५॥ {पन्ना 679-680}

अर्थ: हे भाई! दिल में प्यार से परमात्मा की सिफत सालाह करनी चाहिए। उस परमात्मा की शरण में टिके रहना, उसका नाम सिमरना – इस तरीके से आत्मिक अडोलता में टिक के उस में लीन हो जाना है।1। रहाउ।
हे भाई! इस जगत में वही मनुष्य शूरवीर कहलवाता है जिसके (हृदय-घर में) प्रभू के प्रति प्यार पैदा हो जाता है। पूरा गुरू जिस मनुष्य का (मददगार बन जाता) है, वह मनुष्य अपने मन को जीत लेता है, सारी (सृष्टि) उसके वश में आ जाती है (दुनिया का कोई पदार्थ उसको मोह नहीं सकता)।1।
हे कृपा के खजाने प्रभू! अगर तेरे दासों के चरण मेरे हृदय में बस जाएं, तो उनकी संगति में मेरा शरीर पवित्र हो जाए। (मेहर कर, मुझे) अपने दासों की चरण-धूड़ बख्श, मुझ नानक के लिए (सबसे बड़ा) सुख यही है।2।4।35।


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top