अमृत वेले का हुक्मनामा – 30 सतंबर 2024
रामकली महला ४ ॥
राम जना मिलि भइआ अनंदा हरि नीकी कथा सुनाइ ॥ दुरमति मैलु गई सभ नीकलि सतसंगति मिलि बुधि पाइ ॥१॥ राम जन गुरमति रामु बोलाइ ॥ जो जो सुणै कहै सो मुकता राम जपत सोहाइ ॥१॥ रहाउ ॥ जे वड भाग होवहि मुखि मसतकि हरि राम जना भेटाइ ॥ दरसनु संत देहु करि किरपा सभु दालदु दुखु लहि जाइ ॥२॥
हे भाई! प्रभु के सेवक को मिल कर ( मन में ) आनंद पैदा होता है। (प्रभु का सेवक ) प्रभु की सुन्दर सिफत-सलाह सुना कर ( सुनने वाले के दिल में आनंद पैदा कर देता है) । साध सांगत में मिल कर मानुष (श्रेठ) अकल सिख लेता है, (उस के अन्दर से ) बुरी सोच वाले साडी मैल दूर हो जाती है॥੧॥ हे प्रभु के भगत जनों! (मुझे) गुरु की सिखया दे कर प्रभु के नाम सिमरन के लिए मदद करो। जो जो मानुष प्रभु का नाम सुनता है (या) उचरता है, वह (दुर्मत से) स्वतन्त्र हो जाता है। प्रभु का नाम जप जप कर वह सुन्दर जीवन वाला बन जाता है॥੧॥ रहाऊ ॥ हे भाई ! अगर किसी मानुष के माथे पर अच्छे किस्मत जग जाये, तो परमात्मा उसे संत जनों के साथ मिलाता है। हे प्रभु! किरपा कर के ( मुझे) संत जनों का दर्शन दो, ( संत जनों का दर्शन कर के ) सारा दलिददर दूर हो जाता है ॥੨॥