संधिआ वेले का हुक्मनामा – 26 अगस्त 2024
रागु सोरठि महला ५ ॥ दह दिस छत्र मेघ घटा घट दामनि चमकि डराइओ ॥ सेज इकेली नीद नहु नैनह पिरु परदेसि सिधाइओ ॥१॥ हुणि नही संदेसरो माइओ ॥ एक कोसरो सिधि करत लालु तब चतुर पातरो आइओ ॥ रहाउ ॥ किउ बिसरै इहु लालु पिआरो सरब गुणा सुखदाइओ ॥ मंदरि चरि कै पंथु निहारउ नैन नीरि भरि आइओ ॥२॥ हउ हउ भीति भइओ है बीचो सुनत देसि निकटाइओ ॥ भांभीरी के पात परदो बिनु पेखे दूराइओ ॥३॥ भइओ किरपालु सरब को ठाकुरु सगरो दूखु मिटाइओ ॥ कहु नानक हउमै भीति गुरि खोई तउ दइआरु बीठलो पाइओ ॥४॥ सभु रहिओ अंदेसरो माइओ ॥ जो चाहत सो गुरू मिलाइओ ॥ सरब गुना निधि राइओ ॥ रहाउ दूजा ॥११॥६१॥
अर्थ: (जब) बादलों की घन घोर घटाएं दसों दिशाओं में (पसरी होती हैं), बिजली चमक-चमक के डराती है, (जिस स्त्री का) पति परदेस गया होता है, (उसकी) सेज (पति के बिना) सूनी होती है, (उसकी) आँखों में नींद नहीं आती।1। (पति से विछुड़ के घबराई हुई वह कहती है–) हे माँ! अब तो (पति की ओर से) कोई संदेशा भी नहीं आता। (पहले जब कभी घर से जा के पति) एक कोस रास्ता ही तय करता था तब (उसकी) चार चिठियां आ जाती थीं। रहाउ। हे माँ! मुझे भी ये सुंदर प्यारा लाल (प्रभू) कैसे भूल सकता है? ये तो सारे गुणों का मालिक है, सारे सुख देने वाला है। मैं भी (विछुड़ी नारी की तरह) कोठे के ऊपर चढ़ के (पति का) राह ताकती हूँ, (मेरी भी) आँखें (वैराग-) नीर से भर आती हैं।2। हे माँ! मैं सुनती तो ये हूँ, कि (वह पति प्रभू) मेरे हृदय देस में मेरे नजदीक ही बसता है, पर (मेरे और उसके) बीच में मेरी अहंकार की दीवार खड़ी हो गई है, (कहते हैं) भंभीरी के पंखों की तरह (बड़ा बारीक) पर्दा (मेरे और उस पति के बीच में), पर उसके दर्शन किए बिना वह कहीं दूर प्रतीत होता है।3। हे माँ! जिस सौभाग्यवती पर सब जीवों का मालिक दयावान होता है, उसका वह सारा (विछोड़े का) दुख दूर कर देता है। हे नानक! कह– जब गुरू ने (जीव स्त्री के अंदर से) अहंकार की दीवार गिरा दी, तब उसने माया-रहित दयालु (प्रभू-पति) को (अपने अंदर ही) पा लिया।4। हे माँ! प्रभू-पातशाह सारे गुणों का खजाना है। जिस जीव-स्त्री को गुरू ने वह मिला दिया, जिसकी उसे चाहत थी, उसकी सारी चिंता-फिक्र खत्म हो जाती है। रहाउ दूजा।11।61।