अमृत वेले का हुक्मनामा – 24 अगस्त 2024
आसा महला ४ ॥ हरि कीरति मनि भाई परम गति पाई हरि मनि तनि मीठ लगान जीउ ॥ हरि हरि रसु पाइआ गुरमति हरि धिआइआ धुरि मसतकि भाग पुरान जीउ ॥ धुरि मसतकि भागु हरि नामि सुहागु हरि नामै हरि गुण गाइआ ॥ मसतकि मणी प्रीति बहु प्रगटी हरि नामै हरि सोहाइआ ॥ जोती जोति मिली प्रभु पाइआ मिलि सतिगुर मनूआ मान जीउ ॥ हरि कीरति मनि भाई परम गति पाई हरि मनि तनि मीठ लगान जीउ ॥१॥
(हे भाई! जिस मनुख के) मन में परमात्मा की सिफत-सलाह प्यारी लग गयी,उस ने सब से ऊची आत्मिक अवस्था हासिल कर ली, उस के मन में हृदय में प्रभु प्यारा लगने लग गया। जिस मनुख ने गुरु की समझ ले के परमात्मा का सुमिरन किया, परमात्मा के नाम का स्वाद चखा, उस के मस्तक पर दरगाह से लिखे हुए पूर्व भाग्य जाग गए। हरी नाम में जुड़ के उस ने खसम-प्रभु को ढूंढ़ लिया, वह सदा हरी नाम में जुड़ा रहता है, वह सदा ही हरी के गुण गाता रहता है। उस के मस्तक पर प्रभु के चरणों की प्रीत की मणि चमक उठती है। उस की सुरत प्रभु की जोत में मिल जाती है, वह प्रभु को मिल जाता है, गुरु को मिल के उस का मन (परमात्मा की याद में) व्यस्त हो जाता है। (हे भाई! जिस मनुख के मन में परमात्मा की सिफत-सलाह प्यारी लगने लग गयी, उस ने सब से ऊची आत्मिक अवस्था हासिल कर ली, उस के मन में उस के हृदय में प्रभु प्यारा लगने लग गया।१।