संधिआ वेले का हुक्मनामा – 15 जुलाई 2024
सोरठि मः ४ दुतुके ॥ अनिक जनम विछुड़े दुखु पाइआ मनमुखि करम करै अहंकारी ॥ साधू परसत ही प्रभु पाइआ गोबिद सरणि तुमारी ॥१॥ गोबिद प्रीति लगी अति पिआरी ॥ जब सतसंग भए साधू जन हिरदै मिलिआ सांति मुरारी ॥ रहाउ ॥ तू हिरदै गुपतु वसहि दिनु राती तेरा भाउ न बुझहि गवारी ॥ सतिगुरु पुरखु मिलिआ प्रभु प्रगटिआ गुण गावै गुण वीचारी ॥२॥ गुरमुखि प्रगासु भइआ साति आई दुरमति बुधि निवारी ॥ आतम ब्रहमु चीनि सुखु पाइआ सतसंगति पुरख तुमारी ॥३॥ पुरखै पुरखु मिलिआ गुरु पाइआ जिन कउ किरपा भई तुमारी ॥ नानक अतुलु सहज सुखु पाइआ अनदिनु जागतु रहै बनवारी ॥४॥७॥
☬ अर्थ हिंदी ☬
जब (किसी भाग्यशाली मनुष्य को) भले मनुष्यों वाली संगति प्राप्त होती है, उसे अपने हृदय में शांति देने वाला परमात्मा आ मिलता है, परमात्मा के साथ उसकी बड़ी गहरी प्रीति बन जाती है। रहाउ।
हे भाई! अपने मन के पीछे चलने वाला मनुष्य अनेको जन्मों से (परमात्मा से) विछुड़ा हुआ दुख सहता चला आता है, (इस जन्म में भी अपने मन का मुरीद रह के) अहंकार के आसरे ही कर्म करता रहता है। (पर) गुरू के चरण छूते ही उसे परमात्मा मिल जाता है। हे गोबिंद! (गुरू की शरण की बरकति से) वह तेरी शरण आ पड़ता है।1।
हे प्रभू! तू हर वक्त सब जीवों के हृदय में छुपा हुआ टिका रहता है, मूर्ख मनुष्य तेरे साथ प्यार (के महत्व) को नहीं समझते। (हे भाई!) जिस मनुष्य को सर्व-व्यापक प्रभू का रूप गुरू मिल जाता है उसके अंदर परमात्मा प्रगट हो जाता है। वह मनुष्य परमात्मा के गुणों में सुरति जोड़ के गुण गाता रहता है।2।
हे भाई! जो मनुष्य गुरू की शरण आ पड़ता है उसके अंदर (आत्मिक जीवन का) प्रकाश हो जाता है, उसके अंदर ठंड पड़ जाती है, वह मनुष्य अपने अंदर से बुरी मति वाली मति दूर कर लेता है (ये दुर्मति ही विकारों की सड़न पैदा कर रही थी)। वह मनुष्य अपने अंदर परमात्मा को बसता पहचान के आत्मिक आनंद प्राप्त कर लेता है। हे सर्व-व्यापक प्रभू! ये तेरी साध-संगति की ही बरकति है।3।
हे भाई! जिस मनुष्य को गुरू मिल जाता है उस मनुष्य को सर्व-व्यापक परमात्मा मिल जाता है। (पर, हे प्रभू! गुरू भी उनको ही मिलता है) जिन पर तेरी कृपा होती है। हे नानक! (ऐसा मनुष्य) आत्मिक अडोलता में बहुत सारा सुख पाता है, वह हर वक्त परमात्मा (की याद) में लीन रह के (विकारों से) सचेत रहता है।4।7।