अमृत वेले का हुक्मनामा – 12 जुलाई 2024
बिलावलु महला ४ ॥ अंतरि पिआस उठी प्रभ केरी सुणि गुर बचन मनि तीर लगईआ ॥ मन की बिरथा मन ही जाणै अवरु कि जाणै को पीर परईआ ॥१॥ राम गुरि मोहनि मोहि मनु लईआ ॥ हउ आकल बिकल भई गुर देखे हउ लोट पोट होइ पईआ ॥१॥ रहाउ॥ हउ निरखत फिरउ सभि देस दिसंतर मै प्रभ देखन को बहुतु मनि चईआ ॥ मनु तनु काटि देउ गुर आगै जिनि हरि प्रभ मारगु पंथु दिखईआ ॥२॥ कोई आणि सदेसा देइ प्रभ केरा रिद अंतरि मनि तनि मीठ लगईआ ॥ मसतकु काटि देउ चरणा तलि जो हरि प्रभु मेले मेलि मिलईआ ॥३॥ चलु चलु सखी हम प्रभु परबोधह गुण कामण करि हरि प्रभु लहीआ ॥ भगति वछलु उआ को नामु कहीअतु है सरणि प्रभू तिसु पाछै पईआ ॥४॥
अर्थ: हे भाई! गुरु के वचन सुन के (ऐसे हुआ है जैसे मेरे) मन में (बिरह के) तीर लग गए हैं, मेरे अंदर प्रभु के दर्शन की तमन्ना पैदा हो गई है। हे भाई! (मेरे) मन की (इस वक्त की) पीड़ा को (मेरा अपना) मन ही जानता है। कोई और पराई पीड़ा को क्या जान सकता है?।1। हे (मेरे) राम! प्यारे गुरु ने (मेरा) मन अपने वश में कर लिया है। गुरु के दर्शन करके (अब) मैं अपनी चतुराई समझदारी गवा बैठी हूँ, मेरा अपना आप मेरे वश में नहीं रहा (मेरा मन और मेरी ज्ञान-इंद्रिय गुरु के वश में हो गई हैं)।1। रहाउ। हे भाई! (मेरे) मन में प्रभु के दर्शन करने की तीव्र इच्छा पैदा हो चुकी है, मैं सारे देशों-देशांतरों में (उसको) तलाशती फिरती हूँ (थी)। जिस (गुरु) ने (मुझे) प्रभु (के मिलाप) का रास्ता दिखा दिया है, उस गुरु के आगे मैंअपना तन काट के भेट कर रही हूँ (अपना आप गुरु के हवाले कर रही हूँ)।2। हे भाई! (अब अगर) कोई प्रभु का संदेश ला के (मुझे) देता है, तो वह मेरे दिल, मेरे मन, मेरे तन को प्यारा लगता है। हे भाई! जो कोई सज्जन मुझे प्रभु से मिलाता है, मैं अपना सिर काट के उसके पैरों के नीचे रखने को तैयार हूँ।3। हे सखी! आ चल, हे सखी! आ चल। हम (चल के) प्रभु (के प्यार) को जगा दें, (आत्मिक) गुणों वाले मोहक गीत (कामिनी) गा के उस प्रभु-पति को वश में करें। ‘भक्ति से प्यार करने वाला’ (भक्त वछल) – ये उसका नाम कहा जाता है। (हे सखी! आ) उसकी शरण पड़ जाएं, उसके दर पर गिर पड़ें।4।